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( २९८ ) आर्ष प्राकृत में प्रयुक्त कुछ अन्य अनियमित रूप- . (कुर्यात् , कुर्याः )-कुज्जा। (निदध्यात् )-निहे। ( अभितापयेत् )-अभितावे । ( अभिभाषेत )-अभिभासे । ( लभेत)-लहे। (स्यात् )-सिया, सिआ (आच्छिन्द्यात् )-अच्छे ( आभिन्द्यात् )-अब्भे (हन्यात् )-हणिया ।
यदि क्रियापद के साथ निम्नलिखित शब्दों का सम्बन्ध हो तो इस पाठ में बताये विध्यर्थ प्रत्ययों का प्रयोग हो सकता है । जैसे
उअ (अव्यय )-उअ कुज्जा = चाहता हूँ वह करे । अवि
अवि भुजिज्ज - खाय भी । श्रद्धा अथवा सम्भावना अर्थ वाले धातु का प्रयोग :सद्दह (धातु )-'सद्दहामि सो पाढं पढिज्ज'-श्रद्धा रखता हूँ वह पाठ पढ़े।
'सम्भावेमि तुमं न जुज्झिज्जसि'--सम्भावना करता हूँ तू नहीं लड़े।
'ज' के साथ कालवाचक कोई भी शब्द हो तो वहां विध्यर्थक प्रत्ययों का प्रयोग होता है । जैसे--
'कालो जं भणिज्जामि'--समय है मैं पहूँ। 'वेला जं गाएज्जसि'--समय है तू गा।
जहाँ एक क्रिया दूसरी क्रिया का कारण हो वहाँ भी इस पाठ में बताए विध्यर्थ प्रत्ययों का प्रयोग होता है । जैसे
'जई गुरुं उवासेय सत्थन्तं गच्छेय'--"यदि गुरु की उपासना करे तो शास्त्र का अन्त पावे"।
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