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( ३६१ )
'तुं' और 'त' प्रत्यय परे रहने पर पूर्व के 'अ' को 'इ' अथवा 'ए'
होता है । तुं -
भण् + तुं— {
हो + तुं
{
चय् + एवं चयेवं ( त्यक्तुम् )
दा + एवं = देवं ( दातुम् )
=
२
भणितुं भणेतुं
मणिउँ', भणेउं, होतुं, होइउं ) होउ, होउ }
चर् + एवि पाउ+ एवि :
8. अपभ्रंश भाषा में धातु को
एप्पिणु, एवि, एविणु इसमें से कोई प्रत्यय लगाने से हेत्वर्थ कृदन्त बनते है । जैसे --
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}
=
:
चरेवि ( चरितुम् )
( भवितुं ) = होने के लिए ।
'
भुंज् + अण = भुंजण ( भोक्तुमु ) कर् + अ = करण ( कर्तुम् ) सेव् + अ = सेवणहं ( सेवितुम् ) भुज् + अहं = भुंजणहं ( भोक्तुम् ) मुंच् + अणहि = मुंचहि ( मोक्तुम् सुव् + अर्णाहि = सुबर्णाह ( स्वप्तुम् ) कर् + एप्पि = करेपि ( कर्तुम् ) जि + एप्पि = जे प ( जेतुम् ) कर् + एप्पिणु = करेपिणु ( कर्तुम् ) बोल्ल + एपि बोल्लेपिणु ( वक्तुम् )
( भणितुं ) = पढ़ने के लिए ।
एवं अण, अणहं, अहि, एप्पि,
"
: पालेवि ( पालयितुम् )
=
१. हे० प्रा० व्या० ८।३।१५७ । २. व्यंजनान्त धातु के अन्त में 'अ' हमेशा होता है और स्वरान्त धातु के अन्त में 'अ' विकल्प से होता है । यह एक साधारण नियम है । जैसे
mn
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