Book Title: Prakritmargopadeshika
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Motilal Banarasidas

Previous | Next

Page 462
________________ ( ४६ ) २२६ १२७ शब्द अर्थ पृष्ठाङ्क शब्द अर्थ पृष्ठाङ्क पगब्भ (धा०) २७० पेच्छ (धा०) ३२६ फंद् (धा०) स्पंदन करनापेजा-पीने योग्य ५१ हिलना पेटक (सं०)-समूह फंदए (क्रि०) वह हिलता है ७१ पेडा=पेटी-संदूक १२८ फंदण स्पंदन-हिलना ७१, २७० पेम्म=प्रेम-स्नेह ८१ फकवती (चू० पै०)-भगवती ३८ पेया पीने योग्य फणस पनस-कटहल या कटहल . पेयूष-ताजा दूध २४, का पेड़ पेरन्त-पर्यंत-वहाँ तक फद्धए (क्रि०) वह स्पर्धा करता है ७१ पोअ २६३ फद्धा स्पर्धा पोक्खर-कमल अथवा पानी ६३,१८७ फनसपनस-कटहल फरुस कठोर पोक्खरिणी बनाया हुआ फलं छोटा तालाब पोठिय फल १२६, १८१ पोप्फल=पूंगीफल-सुपारी फलिह स्फटिक रत्न ४४, ४५ पोम्म पद्म-कमल फलिह-लोहे की कील लगी १६, ८७ हुई लाठी ५२ पोर=पानी में रहनेवाला 'पूरा' फलिहा-खुदी हुई खाई नामक छोटा जन्तु ८३ फल (धा०) पोस-पूस का महीना ४३ फाडेइ (क्रि०)=पाटता है-फाड़ता है . प्रत्त (सं०) दिया हुआ ५५, १३३ ४५, ४६ प्रवङ्ग (सं०)=बंदर १३४ फाडे ऊण-पाट करके-फाड़ करके . ४६ फाड् (धा०) पाटना-फाड़ना ४६ प्रामर (सं.)-संस्कारहीन-बर्बर १३४ बबर १३४ फालेइ (धा०) पाटता है-फाड़ता है प्रिउ (अप०) प्रिय ६६ २८० प्लव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |

Loading...

Page Navigation
1 ... 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508