Book Title: Prakritmargopadeshika
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Motilal Banarasidas

Previous | Next

Page 476
________________ शब्द वार= दरवाजा चारण= व्याकरण वाराणसी वारि वात्रण = क्रियायुक्त वावी बाबू वास-वर्ष अर्थ वासव्यास मुनि वासस्य = सौ बरस वासा=बरसात की मौसम वासेसि= व्यास ऋषि वास ( 2 ) = दिन चाह=शिकारी वाहि वि विअड्ढ=पंडित विअड्डि= हवन की वेदिका विअणा=वेदना विआर=विचार विआल(मा०) = विइज्ज विउह= पंडित विओग=वियोग विंचुअ विछि "" ( ६३ ) Jain Education International ପୃଥe ६०, ८७ ૫૪ ८८, ३१७ २४१ ४७ ३१६ २६६ ७४ ८८ ૪ ७८ २६ ४२ ४२ २४३ ३३ ३३ ७७, ८७, ३२६ ६५, ७७, ८७, २२७ शब्द वि= विध्य पर्वत विट = पत्र और पुष्प का बंधन विघ् ( घा० ) विकट (वै० सं० ) = विकार अर्थ पाया हुआ विकस ( सं ) = विकसित विकिर् ( धा० ) विकुव्वइ ( क्रि० ) विक्कव = बेचैन ७४ ६६ विघडू ( धा० ) १३२ ५८, ११४ २६७ १६३, १६५ ७८ विक्के ( धा० ) विक्रस्र (सं० ) = विकसित विच किल = बेला का फूल विचर् ( धा० ) विचिन्त् (घा० ) विच्च ( अप० ) = बीच में विच्छल् ( धा० ) विच्छिक (पालि ) विच्छाहगर ( अप० ) = विक्षोभ विच्छोहयर = विजण = पंखा विजय सेण= विशेष नाम For Private & Personal Use Only पृष्ठाङ्क ६७ "9 करने वाला ३६ ३६ ३३ ३३ विजाणइ ( क्रि० ) १६३ विजुंजइ ( क्रि० ) १६३ विजाहर = विद्यावर नाम की जाति ६६ २८ २७० १२६ १३५ २८६ १६३ ५६ २५६ १३५ २८३ ८१, ८३ २४४ २४४ ८५. ३२६ ७७ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508