Book Title: Prakritmargopadeshika
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 494
________________ पृष्ठ (१) शुद्धि-पत्रक १. कुछ स्थान पर धातु व्यञ्जनान्त नहीं छपे हैं; वहाँ धातु को व्यञ्जनान्त समझ लेना चाहिए । २. पुंल्लिङ्ग को सब जगह पुंलिङ्ग समझना चाहिए। ३. पुस्तक में अनेक स्थान पर अनुस्वार स्पष्ट रूप से नहीं छपे हैं । अशुद्ध २ दूसरा टिप्पण याने 'ए' यह 'ऐ' ३ नंबर (८) ल ५ नंबर (१२) बुड्ड ७ नंबर (२३) तथ ७ शब्दविभाग हैं। गडढा गड्ढा एली, वरसाती कीडा एली-निरन्तर बरसात जिन नियमों के साथ इत्यादि से लेकर समझना चाहिए। यहाँ तक का भाग निकाल दें। हस्व से दीर्घ (१) ह्रस्व से दीर्घ पुना पुणा यास्फ यास्क 'अ' को 'ए' 'अ' को 'ए' तथा 'इ' नूउर नू उर, निउर विजण, व्यजन, पृ० ५५, ५७ पृ० ५६, ५७ में भी 2 2 4 8 ބޫތް Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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