Book Title: Prakritmargopadeshika
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 496
________________ पृष्ठ ७७ ७७ F F F F F F f ८२ ८२ ८२ ८३ नि० २८ ८३ ८३ ८४ ८६ ८७ ८७ ६१ ૨૪ ६ नि० १२ ม ६६ नि० १७ ६७ ६८ नि० २३ ६८ हद १०७ ११० १११ १२० 23 Jain Education International [ ५३ ] अशुद्ध ठड्ढ | (याने हिन्दी में खड़ा ) में द्विर्भाव कुसुप्पयर, कमल-केल, कमल | • विविध तिरिया तिरिच्छ मसाण 1 अपभ्रंश भाषा में स्पप्न अइमुत्तय, मणसि । पिट्टी मुनियर | केहं + 'अ' का वर्णामि, एग्गमेग | आलं तुङमाल नोमोहो पाणिनिकाल से इच्छाति चतुखत शुद्ध ठड्डनिस्पंद व्यापक हिन्दी में ठाढ़ाखड़ा ) में बैकल्पिक द्विर्भाव कुसुमप्पयर, कदल सर्वथा तिरिय तिरिच्छि मसान' | ( देखिए- पा० १ - केल, कयल । प्र० से मुसान ) तक का सारा उल्लेख | इसके बाद अलग पैरे ग्राफ में होना चाहिए २ अपभ्रंश भाषा में स्वप्न अइमुतय, मसि । पिट्ठी मुणीयर | कह + 'म्' का वर्णमि, एगमेग । अलं तुमलं नमोहो पाणिनि के काल से इच्छति चतुरंत For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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