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[ ८४ অয় संज्ञा वैदिक पांडतोने महर्षि पणिनि उतावला करना जलदी करना पूजना, अर्चना
शुद्ध कितनेक वैदिक पंडितों ने महर्षि पाणिनि उतावला होना जल्दी करना पूजना-अर्चना-अर्चन करना निकालना-काढना, खींचना, खेडना तू उतावला होता भाषा में तपना, संताप खिव (क्षिप)
१४०
काटना
१४२ १४४
१४६
१४६
१४६
दीव
१४६ १४७
खींचना तू उतावला करता दूसरी भाषा में तपना, संतान खिव् (क्षप्) दीव लुह (लुप्य) बदुवचनीय हम लोटते जाप कहते तू लोटता जीवमो बेजामो नि+प्पज्ज घोतित होना पाचवा सिलाह सूस
१४७ १४८ १५२ १५४ १५४ १५६ १५६
लुट्ट ( लुटय ) बहुवचनीय हम आलोटते जाप करते तू आलोटता जविमो बे जामो नि+पज्ज द्योतित होना पाँचवाँ सिलाह सूस
१५६
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