Book Title: Prakritmargopadeshika
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 502
________________ पृष्ठ ३०१ ३०१ ३०२ ३०२ ३०३ ३०३ ३०६ ३१२ ३१४ ३१६ ३१६ ३१६ ३१८ ३१६ ३२०, ३. ३२१ ३२३ ३२३ ३२४ ३२४ ३२५ ३२५ ३२५ ३२७ ३३० Jain Education International अशुद्ध वरजे । [ ८ ] तुझ को.. बत्तेण तथा अकारान्त हे मेघा ! (वाक् ) मूल अकारान्त नहीं है) बुद्धिओ फूआ कति कच्छु (कच्छू) वावली खंति मूल धातु में 'अ' जौर 'भम' धातु का आ+सार् (आ+स्-सार) अ+ल्लव् झाम् (दह्) सं+ध् ( कथ् ) लज्जित करना वलग्ग (बिलग्न ) (प्र+सर) (हरिश्चन्द) बीहाँ शुद्ध वर्जे | तुझे.. वित्तेण तया आकारान्त हे महा ! (वाक्-मूल आकारान्त नहीं है) बुद्धीओ फफी कंति कच्छु (कच्छु) वावडी खंति मूल धातु को 'अ' और 'भम्' धातु का आ + सार (आ+सार) उ+ल्लव झाम (ध्मा ?, दह् ) सं+घ् (कथ्) लज्जित होना वलग्ग् (वि+लग्न) (प्र+सर्) (हरिश्चन्द्र) बीसवाँ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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