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अशुद्ध
वरजे ।
[ ८ ]
तुझ को..
बत्तेण
तथा
अकारान्त
हे मेघा !
(वाक् ) मूल अकारान्त नहीं है)
बुद्धिओ
फूआ
कति
कच्छु (कच्छू)
वावली
खंति
मूल धातु में
'अ' जौर
'भम' धातु का
आ+सार् (आ+स्-सार)
अ+ल्लव्
झाम् (दह्)
सं+ध् ( कथ् )
लज्जित करना
वलग्ग (बिलग्न )
(प्र+सर)
(हरिश्चन्द)
बीहाँ
शुद्ध
वर्जे |
तुझे..
वित्तेण
तया
आकारान्त
हे महा !
(वाक्-मूल आकारान्त नहीं है)
बुद्धीओ
फफी
कंति
कच्छु (कच्छु)
वावडी
खंति
मूल धातु को
'अ' और
'भम्' धातु का
आ + सार (आ+सार)
उ+ल्लव
झाम (ध्मा ?, दह् )
सं+घ् (कथ्)
लज्जित होना
वलग्ग् (वि+लग्न)
(प्र+सर्)
(हरिश्चन्द्र)
बीसवाँ
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