Book Title: Prakritmargopadeshika
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Motilal Banarasidas
________________
शब्द
अर्थ
वैवाहिअ = समधी - वर-कन्या के -पिता
माता
वेवू ( धा० )
वेश्या (सं० ) वेसंपायण = नाम विशेष
वेसाह= वैशाख मास
वोट = पत्र और फूल का बंधन
२६८
१४६
१३१
३०
२४२
२८
२६२
३७१
त्रास ( अप० ) = व्यास मुनि ८८, ११६
श
वोज्झ
वोत्तव्वं
शव (सं० )
शव्ञ ( मा० ) = सर्वज्ञ शप ( मा० ) = कुमुद शालश ( मा० ) = सारस पक्षी शाली (सं० ) = पत्नी की बहन शीताल (सं० ) = शीतता युक्त शुद ( मा० ) = सुना शुक्र ( मा० ) = शुष्क
हुआ
( ६६ )
पृष्ठाङ्क
शुद्ध ( मा० ) = अच्छा
सूरि (सं० ) = पंडित शोचि (सं० ) = प्रकाश शोभण ( मा० ) = शोभन श्याल ( सं० ) =साला =त्नी का
भाई
Jain Education International
१२.७
६६
६३
४३
१३१
१३०
४३
६३
६८
१३१
१२७
४३
१३१
शब्द
अर्थ
पृष्ठाङ्क
श्रवण ( सं० ) = श्रमण
१२६
श्लेष्मल ( सं० )=श्लेष्म युक्त १२६
स
स
सइ
सई-इंद्राणी
सउणि
सं
संकल= सिकड़ी नाम का आभूषण ४५
संकला = सांकल
४५
संकु
संख
संग
संगच्छति ( क्रि०)
संघार = संहार = विनाश
संघ (धा० )
संचिणइ ( क्रि०)
संजम् (धा० )
संजय
संजल ( घा० )
संजा = संज्ञा - समझना
संज्झा=संध्या
२६८
६२, ६७, ६८, २२६
२०६.
१६२
४३
३२४
१६२
२७०
१८८
२६०, २१४
६१
८२
८२, ६७, ६८, ३१३
३८
४३
संझा
संठ (चू० पै०)=सांढ
संड=
For Private & Personal Use Only
१६६
१८४, २५८
३३, ११६
२४०
१६२
""
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508