Book Title: Prakritmargopadeshika
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Motilal Banarasidas
________________
अर्थ
शब्द
सिनुसा ( पै० )=पुत्रवधू
सिनेरु ( पालि ) = स्नायु
सिन्न= लश्कर
सिप्पि
सिभा = वृक्ष का जटामय मूल
सिम
सिमिण
सिम्भ= श्लेष्म सिया ( क्रि० )
सिरान्नस
सिलेसुमा (पालि )
सिलोग=श्लोक सिविण
सिव्व (घा० )
सिसु
सिस्स
सिह
सिरी=श्री- लक्ष्मी
सिलाहू (वा० )
सिलिट्ठ = श्लिष्ट - चिपका हुआ
सिलिम्ह= श्लेष्म
सिलिम्हा=
"
सिलेस - श्लेष - चिपकना
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( ७१ )
७०
५१
३०
८४, ३१५
४१
पृष्ठाङ्क
२००
५३, ८६, २६८
७३
२६८
५.४
८६
१५६
७३
७६
सिहरोवरि=शिखर के ऊपर
सिहा = वृक्ष का जटामय मूल
सीअ
७६
७३
५३, २६८
१४६, २५८
२४०
२००
३२५
६६
अर्थ
शब्द
|सीअर = जल के कण
सीआण = श्मशान
सीआल
सीभर = जल के कण
सीळ (पै०)= सदाचार
सील
४१
२००, २०१
७३. सुइ
७३
सीलभूअ
सीस
सीह
सीहर= जल के कण
सु
सुअ = शास्त्र अथवा सुना हुआ सुअगड=श्रुतकृत-सुनकर किया
हुआ
सुइल=सफेद
सुंक = चुंगी -
४४
८४
१८२, १५६
४४
४२
१८७
२६६
१८७, २००
२२, ४३, ६८, १८२
४४
१६४
૪૨
-राज कर
"
सुंग= | सुंदरिअ=सुन्दरता
सुंदर=
"
सुकड = अच्छा कार्य
सुकय= सुकिल=सफेद
सुकुमार = कोमल
सुक्क
सुक्ख= सूखा हुआ
""
पृष्ठाङ्क
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४७
२५५
७३
७६
७६
७४
८०
४७
४७
७३
८३.
५७, ६३
५७, ६२
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