________________
( ३६० ) धूमाइ । (धूमायते ) = धूआँ निकालता है, धुएँ धूमाअइ का उद्वमन करता है । सुहाइ । ( सुखायते) = सुख का अनुभव होता है, सुहाअइ अच्छा लगता है। सद्दाइ ) ( शब्दायते ) - शब्द करता है।
सद्दाअ) नामधातु के उक्त संस्कृत रूपों में जो 'य' दिखाई देता है प्राकृत में उसका विकल्प से लोप हो जाता है। यह नियम केवल नामधातु में ही लगता है।
हेत्वर्थ'कृदन्त* मूल धातु में 'तु' और 'तए'२ प्रत्यय लगाने पर हेत्वर्थ कृदन्त रूप बनते हैं।
१. हे० प्रा० व्या ८॥३॥१३८ ।
* पालि में धातु को 'तुं' तथा 'तवे' प्रत्यय लगाने से हेत्वर्थ कृदन्त बनते हैं ( देखिए पा० प्र० पृ० २५७ )। जैसे
पा० कत्तु प्रा० कातुं पा० कत्तवे प्रा० करित्तए इत्यादि ।
हेत्वर्थ कृदन्त के 'तु' प्रत्यय के स्थान में शौरसेनी सौर मागधी में 'दु' प्रत्यय होता है तथा पैशाची में तो 'तु' प्रत्यय हो लगता है। जैसे :
शौरसेनी-हस् = + Q= हसि, मागधी-हश + दु= हशिदूं पैशाचो-हस् + तुं = हसितुं ।
२. हेत्वर्थ कृदन्त बनाने के लिए वैदिक संस्कृत में 'तवे' प्रत्यय का उपयोग होता है । प्राकृत का 'त्तए' और वैदिक 'तवे' प्रत्यय बिल्कुल समान है। 'त्तए' प्रत्यय वाले रूप आर्ष प्राकृत में विशेषतः उपलब्ध होते हैं ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org