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गेण्ह + तुं = घेतुं ( ग्रहीतुं) = ग्रहण करने लिए। दरिस् + तुं = ददर्छ ( द्रष्टुम् ) = देखने के लिए। भुज् + तुं = मोत्तु ( भोक्तुम् ) = भोगने के लिए, खाने के लिए। मुञ्च् + तुं = मात्तु (मोक्तुम्) = मुक्त होने के लिए, छूटने के लिए। रुद् + तुं = रोत्तु ( रोदितुम् ) = रोने के लिए। वच् + तुं = वोत्तु ( वक्तुम् ) = बोलने के लिए । लह + तुं = लद्ध ( लब्धम् ) = लेने के लिए, प्राप्त करने के लिए। रुध् + तुं = रोद्ध ( रोद्धम् ) = रोकने के लिए, निरोध करने के लिए। युध् + तुं = योधु,! ( योद्धम् ) = युद्ध करने के लिए। __ जोद्ध
सम्बन्धक भूतकृदन्त* मूल धातु में तुं', तूण, तुआण, अ, इत्ता, इत्ताण, आय और आए (इन आठ प्रत्ययों में से कोई एक ) प्रत्यय लगाने पर सम्बन्धक भूतकृदन्त
* पालि में धातु को 'त्वा', त्वान' तथा 'तून' प्रत्यय तथा 'य' - प्रत्यय लगाने से सम्बन्धक भूतकृदन्त के रूप बनते हैं। जैसे
पालि करित्वा प्रा० करित्ता । पालि-हसित्वान प्रा० सित्ताण ।
, कत्तन प्रा० कातून । ,, आदाय प्रा० आदाय ( देखिए पा० प्र० पृ० २५५ से २५६ )। शौरसेनी तथा मागधो भाषा में सम्बन्धक भूतकृदन्त के सूचक 'इय,' और 'दूण' प्रत्यय हैं। जैसे
हो + इय = हविय प्रा० होत्ता सं० भूत्वा हो + दूण = होदूण पढ + इय - पढिय पढित्ता सं० पठित्वा पढ + दूण = पढिदूण " .
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