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( ३६३ :) इहरा (इतरथा) = अन्यथा, नहीं तो। ईसिं (ईषत्) = थोड़ा। उत्तरसुवे (उत्तरश्वः)=भावि, परसों, आगामी दिन के बाद का दिन । एगया (एकदा) = एक बार-एक समय । एगंततो (एकान्ततः)= एकान्त रूप से अथवा एक पक्षीय । एत्थ (अत्र) =अत्र, यहाँ, इधर । कल्लं (कल्यम्) = कल । कह, कहं (कथम्) = किस प्रकार, क्यों ? .. कालाप्रो (कालतः) = काल से, समय से। .. केवच्चिरं (कियच्चिरम् = कितने लंबे काल तक । केत्रच्चिरेण (कियच्चिरेण) = कितने लम्बे समय से ।
वाक्य (हिन्दी) मूर्ख मनुष्य बड़बड़ (लबलब) करता है। राजा ने हंस कर लोगों को नमन किया। मैं पापों का निरोध करने लिए उतावला हुआ। महावीर को देखने के लिए लोगों द्वारा दौड़ा जाता है। भोगों को भोग-भोग कर उनके द्वारा खेद पाया जाता है। तत्त्व को जानकर विद्वान् द्वारा मुक्त हुना जाता है। प्रह्लादकुमार प्रजा के दुःखों को समझ कर उनका सेवक हुआ। जगत् में तभी (सब कुछ) हंसने जैसा है और रोने जैसा भी। पुण्य इकट्ठा करने योग्य है और पाप जलाने योग्य है । वह पढ़ता-पढ़ता सोता है । पढ़ाया जाता हुआ प ठ उसके द्वारा सुना जाता है।
वाक्य (प्राकृत) सज्जणो सत्थवयणं सोच्चा सद्दहइ ।
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