Book Title: Prakritmargopadeshika
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 442
________________ पांक ८५ . ( २६ ) शब्द अर्थ पृष्ठांक शब्द अर्थ जेह ( अप० ) जैसा टसर एक प्रकार का सूत ४६ जोअ-द्योत-प्रकाश ६६ टूवर दाढी-मूंछ न हो वैसा ४६ जोइअ जोइसिस २५६ जोगि २६७ जोण्हा ज्योत्स्ना-चंद्र की चंद्रिका ६६ ठंभ-स्तंभ-थंभा ७७ जोत् (धा० ) प्रकाश करना १५४ ठंभह ( क्रि०) वह स्तब्ध होता जोव्वण-यौवन-जवानी २८१ है-गति रहित है ७७. ठंभिजइ ( क्रि० ) = गति रहित होना ७७ ठं ( धा०) गति न करनाझज्झर-झन्झर-घड़ा, झंझर झडिल-जटावाला खड़ा रहना ७७ झलरी ( सं० ) झालर १३२ ठक्का (चू० पै०)-ढक्का-डंका--- झसोदर मछली के समान चम नगाड़ा ७७, ७८ . कीले पेटवाला १०१ ठड्ड-ठाढ़ा-खड़ा २६४ झा (धा०) १५० ठद्ध-ठाढा-खड़ा ५८, ७० झाण ध्यान ६७ ठा (धा०) १५० झाम् (धा०) ३२४ ठीण जमा हुआ घी २०, ७७. झायइ ( क्रि०) ध्यान करता है ६७ झिजइ (कि० )-क्षय पाता है ६७ झीण क्षीण-क्षय पाया हुआ ६७ ।। डंड-दंड-डंडा ४८, ११८ झुणि ध्वनि-शब्द १८, २८० डंभ दंभ-कपट ४८, ११८ डंस ( धा० ) डसना डक्क-इंसा हुआ ७५ टगर तगर का सुगंधी काष्ठ ४६ । टमरुक (चू० पै.)= ड, ३८ ड डसा हुआ डज्झमाण २६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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