Book Title: Prakritmargopadeshika
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Motilal Banarasidas
________________
शब्द
दिण
अर्थ
दिणयर
दिणेस = सूर्य
दिण्ण-दिना दिया हुआ
दित्ति दिप्पू ( धा० ) दियड=डेढ़-१|| संख्या
दीवतेल्ल
वेल्ल
दिव= दिवस = दिवस
दिवह - दिह-दिवस
दिविदिवि ( अप० ) = रोजरोज
नित्य
97
दिव्व् (धा० )
दिसट ( पै० )=देखा हुआ
दिसा-दिशा
दिहि=धैर्य-धृति
दीव् ( घा० )
दीह = दीर्घ- लंबा
( ३६ )
पृष्ठांक शब्द
२८१
दुअल्ल - दुकूल - कपडा दुआइ-द्विजाति- ब्राह्मण
२००
६६
१८, ७८
दुआर= दार-द्वार - दरवाजा
दुइ अ= दूसरा
Jain Education International
३१५
१४६
२८२
२८२
૫૪
५४
१२५
१५४
६८
८३)
३१३
८४, ३१५
दीहा ( अप० ) = दीर्घ
१७
दु= दो -२ संख्या २२, १६३, ३१७
२५
६०
८७
२२
२८१
२८१
१४६
८१
दुइज्ज=दूसरा
दुइय = "
दुरण - द्विगुण- दुगुना
दुऊल=कपडा
दुक्कड = दुष्कृत - पाप
दुकय=
दुकाल
दुक्ख
दुक्खदंसि
दुक्खि अ = दुःखी
दुगुल्ल=कपड़ा
दुग्गंधि
दुग्गच्छइ
दुग्गाएवी = दुर्गा देवी
दुग्गादेवी==
1
दुग्गावी = दुचत्तालिसा
दुठु
दुणि
दुद्ध=दूध
दुपण्णासा
दुष्पूरिय
अर्थ
दुरणुचर दुरतिकम
For Private & Personal Use Only
"
५५
५५, ११७
३८१
२२८
११४
५७, २२७, ३२७
३८२
२१३
दुम= वृक्ष
६.१, २०६
दुरइक्कम=नहीं टाला जा सके ऐसा ६६
पृष्ठांक
२८२
२३, २८२
93
२२.
૫
४७
४७
२२६
८१, १८८
२४०
५६, ८१
४४
२५५
१६३
२१२
२१३
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508