________________
( ३६६ ) हो + अ + तुआण = होइतुआण, होएतुआण! ( भूत्वा ) = होकर
होइउआण, होएउआण) हो + तुआण = होतु आण, होउआण ( भूत्वा ) = होकर . अहस् + अ = हसिअ, हसेअ ( हसित्वा) = हँसकर हो+अ+ अ =होइअ, होएअ (भूत्वा) = होकर हो+अ = हो इत्ताहस् + इत्ता = हसित्ता, हसेत्ता ( हसित्वा ) = हँसकर इत्ताणहस् + इत्ताण = हसित्ताण, हसेत्ताण ( हसित्वा ) हँसकर
आयगह + आय = गहाय ( गृहीत्वा )= ग्रहण करके
आएआय + आए = आयाए ( आदाय ) = ग्रहण करके संपेह + आए = संपेहाए ( संप्रेक्ष्य ) = खूब विचार करके ( 'आय' और 'आए' प्रत्यय का उपयोग जैन आगमों की भाषा में प्रायः उपलब्ध होता है । ) इसी प्रकार सुस्सूसितुं, सुस्सूसितूण, सुस्सूसितुआण, सुस्सूसिअ, सुस्सूसित्ता, सुस्सूसित्ताण ( शुश्रूषित्वा = शुश्रूषा करके ); चंकमि+ तु-मितूण-मितुआण, मिअ, मित्ता, मित्ताण ( चंक्रमित्वा = चंक्रमण करके ) इत्यादि रूप भी समझ लें।
प्रेरक सम्बन्धक भूतकृदन्त भणावि + तुं-वितूण-वितुआण, विअ, वित्ता-वित्ताण (भणापयित्वा)
=पढ़वा कर हासि + तुं = सितूण, सितुआण, सिअ, सित्ता, सित्ताण (हासयित्वा)
=हंसा कर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org