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( ३६८ ) आयाय ( आदाय ) = ग्रहण करके गच्चा, गत्ता ( गत्वा ) = जाकर किच्चा, किच्चाण ( कृत्वा ) = करके नच्चा, नच्चाण ( ज्ञात्वा ) = जान कर नत्ता ( नत्वा )= नम कर, झुककर बुज्झा (बुवा) = जान कर भोच्चा ( भुक्त्वा ) = खा कर, भोग कर मत्ता, मच्चा ( मत्वा ) = मान कर वंदिता ( वन्दित्वा ) = वन्दना करके विप्पजहाय ( विप्रजहाय, विप्रहाय ) = त्याग कर, छोड़कर सोच्चा (श्रुत्वा ) = सुनकर सुत्ता ( सुप्त्वा ) = सोकर आहच्च ( आहत्य ) = आघात करके, पछाड़कर साहट्ट ( संहृत्य ) = संहार करके, बलात्कार करके हंता ( हत्वा ) = मार कर आहटु ( आहृत्य) = आहार करके परिन्नाय ( परिज्ञाय ) = जानकर चिच्चा, चेच्चा, चइत्ता ( त्यक्त्वा ) = छोड़कर निहाय ( निधाय) = स्थापित कर पिहाय ( पिधाय) = ढाँक कर परिच्चज्ज ( परित्यज्य ) = परित्याग करके, छोड़कर अभिभूय ( अभिभूय ) = अभिभव करके, तिरस्कार करके पडिबुज्झ (प्रतिबुध्य ) = प्रतिबोध पाकर ।
उच्चारणभेद से उत्पन्न इन सभो अनियमित रूपों की साधनिका -संस्कृत रूपों द्वारा हो समझी जा सकती है। इसके अतिरिक्त अन्य अनेक अनियमित रूप भी संस्कृत की तरह समझ लें।
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