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प्रेरक हेत्वर्थ कृदन्त ( मूलधातु के प्रेरक अंग बनाने के लिए देखिए पाठ १९वां ) भण्-भणावि + तुं = भणावितुं (भणापयितुम् ) = पढ़ाने के लिए।
भणाविउ
कर् + त्तए = करित्तए, करेत्तए ( कर्तवे-कर्तुम् ) = करने के लिए। गम् + त्तए = गमित्तए, गमेत्तए ( गन्तवे, गन्तुम् ) = जाने के लिए। आहर् + त्तए = आहरित्तए, आहरेत्तए (आहर्तवे, आहर्तुम् ) = आहार
करने के लिए। दल + त्तए = दलइत्तए, दलएत्तए ( दातवे-दातुम् ) = देने के लिए। ( आहरित्तए के बदले 'आहारित्तए' रूप भी उपलब्ध होता है और 'दल+त्तए' में 'अइ' का आगम होता है।) हो+त्तए = होइत्तए, होएत्तए (भवितवे-भवितुं ) = होने के लिए। हो + त्तए = होत्तए ( भवितवे-भवितुं ) = होने के लिए। सुस्सूस + तए = सुस्सूसित्तए, सुस्सूसेत्तए ( शुश्रूषितवे-शुश्रूषितुम् )
शुश्रूषा करने के लिए। चंकम +त्तए = चंकमित्तए । ( चंक्रमितवे-चङ्क्रमितुम् ) चंक्रमण
चंकमेत्तए करने के लिए। भण-भणावि + त्तए = भणा वित्तए । (भणापयितवे-भणापयितुम्)=
पढ़ाने के लिए। अनियमित हेत्वर्थ कृदन्त कर् + तुं = कातुं, काउं, कटुं, कटु ( कर्तुम् ) = करने के लिए। भण् + तुं - भण + तुं = भणितुं, भणेतुं हो + तुं-होअ + तुं = होइतुं, होएतुं हो+तु
होतुं
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