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( ३२१ ) ४. केवल 'भम' धातु का प्रेरक अंग 'भमाड' (भम् + आड) बनता है ( देखिए हे० प्रा० व्या० ८।३।१५१ )। जैसेभम् + अ = भामइ,
भम् + ए = भामेइ भम् + आव-भमावइ भम् + आवे = भमावेइ
भम् + अड = भमाडइ, भमाडेइ ५. आर्ष प्राकृत में कहीं-कहीं प्रेरणासूचक 'अवे' प्रत्यय का प्रयोग भी उपलब्ध होता है। 'अवे' प्रत्यय परे रहते धातु के उपान्त्य 'अ' को 'आ' होता है। जैसे
कर् + अवे = कारवे ( कारापय )--कारवेइ ( कारापयति )
इस प्रकार धातु मात्र में प्रेरक अंग लगाकर उसके साथ अमुक काल और अमुक पुरुष-बोधक प्रत्यय लंगाने से उनके हर प्रकार के रूप तैयार होते हैं । इन रूपों को सिद्ध करने को प्रक्रिया पिछले पाठों में बताई गयी है तथापि यहाँ उदाहरण रूप से एक-एक रूप बता दिया गया है । प्रेरक अंग के वर्तमानकालिक रूपएकवचन
बहुवचन खाम-खाममि
खाममो, खामामो खामामि
खामिमो खामेमि
खामेमो खामे-खामेमि
खामेमो खमाव-खमावमि, खमावामि
खमावमो, खमावामो खमामि
खमाविमो, खमावेमो
इत्यादि। सर्वपुरुष ) खामेज्ज, खामेज्जा सर्ववचन खमावेज्ज, खमावेज्जा
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