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________________ ७२ ( ३२१ ) ४. केवल 'भम' धातु का प्रेरक अंग 'भमाड' (भम् + आड) बनता है ( देखिए हे० प्रा० व्या० ८।३।१५१ )। जैसेभम् + अ = भामइ, भम् + ए = भामेइ भम् + आव-भमावइ भम् + आवे = भमावेइ भम् + अड = भमाडइ, भमाडेइ ५. आर्ष प्राकृत में कहीं-कहीं प्रेरणासूचक 'अवे' प्रत्यय का प्रयोग भी उपलब्ध होता है। 'अवे' प्रत्यय परे रहते धातु के उपान्त्य 'अ' को 'आ' होता है। जैसे कर् + अवे = कारवे ( कारापय )--कारवेइ ( कारापयति ) इस प्रकार धातु मात्र में प्रेरक अंग लगाकर उसके साथ अमुक काल और अमुक पुरुष-बोधक प्रत्यय लंगाने से उनके हर प्रकार के रूप तैयार होते हैं । इन रूपों को सिद्ध करने को प्रक्रिया पिछले पाठों में बताई गयी है तथापि यहाँ उदाहरण रूप से एक-एक रूप बता दिया गया है । प्रेरक अंग के वर्तमानकालिक रूपएकवचन बहुवचन खाम-खाममि खाममो, खामामो खामामि खामिमो खामेमि खामेमो खामे-खामेमि खामेमो खमाव-खमावमि, खमावामि खमावमो, खमावामो खमामि खमाविमो, खमावेमो इत्यादि। सर्वपुरुष ) खामेज्ज, खामेज्जा सर्ववचन खमावेज्ज, खमावेज्जा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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