SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 339
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३२० ) कर् + अ = कार कर् + आव = कराव कर् + ए = कारे कर + आवे = करावे १. मूल धातु की उपधा के-उपान्त्य के-इकार को प्रायः 'ए' और उकार को 'ओ' हो जाता है ( देखिए हे० प्रा० व्या० ८।४।२३७)। जैसे विस् + वेस् = वेसइ, वेसेइ, वेसावइ, वेसावेइ । दुह् +दोह = दोहइ, दोहेइ, दोहावहि, दोहावेइ । २. उपधा में गुरु या दीर्घ स्वर वाले धातु हों तो उसमें उपर्युक्त प्रत्ययों के अतिरिक्त 'अवि' प्रत्यय भी लगता है ( देखिए हे० प्रा० व्या० ८।३।१५०) । जैसे चूम् + अ = चूसइ, चूसेइ, चूसावइ, चूसावेइ, चूसविइ । तूस्-तूसविअं, तोसि ( तोषितम् )। ३. 'अ' जऔर 'ए' प्रत्यय परे रहते धातु के उपान्त्य 'अ' को 'आ' होता है ( देखिए हे० प्रा० व्या० ८।३।१५३ ।)। जैसे खम् खाम खामइ खम् खामे खामेइ अथवा प्र०पु० कारापयामि कारापयाम म०पु० कारापयसि कारापयथ तृ.पु. कारापयति कारापयंति गुह का गृहयति इत्यादि दुस का दूसयति ,, हन का घातयति, प्रा० घातेति -देखिए पा० प्र० पृ० २२६-२२६ १. हे० प्रा० व्या० ८।३।१४६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy