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बीसहाँ पाठ भावे तथा कर्मणि-प्रयोग के प्रत्यय -
ईअ, ईय, इज्ज ( य )-( देखिए हे० प्रा० व्या० ८।३।१६० ) । * पालिभाषा में भावे तथा कर्माण प्रयोग के प्रत्यय इस प्रकार हैं
य, इय, ईय। इन प्रत्ययों के लगने के बाद 'ति' 'ते' आदि पुरुषबोधक प्रत्यय लगाने से निम्नोक्त रूप बनते हैं। 'य' लगाने के बाद अक्षरपरिवर्तन के नियमानुसार 'य' का लोप होता है और शेष व्यंजन का द्विर्भाव होता है। तुस्-तुस्यते -तुस्सते, तुसियति पुच्छ्-पुच्छ्यते-पुच्छते, पुच्छियति मह-महीयति मथ्-मथोयति-देखिए पा० प्र० पू० २३४ । पैशाची भाषा में कर्म में तथा भाव में 'इय्य' प्रत्यय लगता है।
-देखिए हे० प्रा० व्या० ८।४।३१५ । गा+ इय्य+ ते % गिय्यते ( गीयते)। दा+ इय्य + ते = दिय्यते ( दीयते )। रम् + इय्य + ते = रमिय्यते ( रम्यते )।
पठ + इय्य + ते = पठिय्यते ( पठ्यते )। मात्र 'कृ' धातु को 'ईर' प्रत्यय लगता है
कृ + ईर + ते= कोरते । कृ + ईर + माणो=कीरमाणो ।
-देखिए हे० प्रा० व्या० ८।३१६ ।
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