________________
( ३४६ ) *'राय' (राजन् ) शब्द के रूप एकव०
बहुव० प्र. *राया' (राजा) राइणो', रायाणो' (राजानः) द्वि० राइणं ( राजानं ) , , रणो (राज्ञः)
* पालि भाषा में राजन् वगैरह शब्दों के रूप थोड़े भिन्न होते हैं । जैसे--प्राकृत में 'राय' शब्द है वैसे पालि में 'राज' शब्द है । पालि में 'राज' शब्द के रूप अकारान्त के समान होते हैं । राजा
राजानो राजानं, राजं
राजानो राजेन
राजेभि, राजेहि इत्यादि। प्राकृत में जहाँ 'रण्णा' जैसे दो णकारवाले रूप होते हैं वहाँ पालि में रञा, रञो ऐसे दो 'ञ' कार वाले रूप होंगे और प्राकृत में जहाँ राइणा, राइणो इत्यादिक 'इ' कार वाले रूप होते हैं वहाँ पालि में राजिना, राजिनो इत्यादि रूप बनेंगे और तृ० बहु० राजूभि तथा च०-५० बहुवचन में राजूनं, रखं सप्तमी के एकवचन में राजिनि, बहुव० में राजुसु इत्यादिक रूप होते हैं ( देखिए पा० प्र० पृ० १२३ )।
पालि में अत्त, अत्तन, अत्तान ( आत्मन् ) के रूप अकारान्त 'बुद्ध' के समान होते हैं । विशेषता यह है कि द्वि० ब० अत्तानो, तृ० ए० अत्तना, च०-५० ए० अत्तनो, च०-५० ब० अत्तानं, स० ए० अत्तनि ऐसे रूप भी होते हैं।
ब्रह्म, ब्रह्म (ब्रह्मन् ) के रूप :प्र० ब्रह्मा, ब्रह्मानो द्वि० ब्रह्मानं ,
तृ० ब्रह्म ना इत्यादि होते हैं। पालि में 'ब्रह्म के रूप उकारान्त की तरह होंगे।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org