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( ३२३ )
विध्यर्थ खाम-खामिज्जामि, खामेज्जामि खामे-खामेज्जसि, खामिज्जसि खमाव-खमाविज्जइ, खमावेज्जइ खमावे-खमावेज्जइ, खमाविज्जइ खाम-खामिज्जइ, खामेज्जइ ( सर्वपुरुष-सर्ववचन ) ।
क्रियातिपत्ति खाम-खामंतो, खातो, खामितो'
खाममाणो, खामेमाणो खामे-खातो, खामितो, खामेमाणो खमाव-खमावंतो, खमातो, खमावितो, खमावमाणो, खमावेमाणो खमावे-खमातो, खमावितो, खमावेमाणो
इस प्रकार प्रत्येक प्रेरक अंग में सब प्रकार के पुरुषबोधक प्रत्यय लगाकर उनके विविध रूप सिद्ध कर लेना चाहिए।
प्रेरक सह्यभेद तथा सब प्रकार के प्रेरक कृदन्त बनाने हों तब भी प्रेरक अंग में हो तत्तत् सह्यभेदी और कृदन्त के प्रत्यय जोड़ कर रूप सिद्ध करें। सह्यभेद आदि के प्रत्ययों की प्रक्रिया अगले पाठों में आनेवाली है।
धातुएँ उव + दंस ( उप + दर्शय )= दिखाना, पास जाकर बताना। आ + सार (आ+स्, सार ) = इधर-उधर फैलाना, ले जाना । अ+क्खोड् ( आ + क्षोद् ) = खोदना, काटना ।
अ+ल्लव ( उद्+लप) = बोलना। १. हे० प्रा० व्या० ८।३।३२ के अनुसार स्त्रीलिंग में 'खामंती',
खाममाणी रूप होते हैं।
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