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( १८५ ) सिंह की पूंछ लम्बी होती है । आँख में क्रोध को देखता हूँ। सूर्य अथवा चन्द्र नहीं घूमते । बैल सींगो से शोभा पाता है । चमार चमड़े को साफ करता है। मुख से वचन बोलता हूँ। पुरुष पतले होठ से शोभा पाता है। वर्षा नित्य होती है। वर्षा बिना वन सूखते हैं। वाक्य ( प्राकृत में) अजिणाए वहति वग्घे । फलाइ मायणम्मि सोहन्ति । बुहा पुरिसा हियये वेरं न रक्खन्ति । निवो वणेसू सिंघे वा वग्घे वा हणइ । सिंघो फलं न खायइ । चंदणस्स वर्णसि जामि । कुम्मारो नगराओ आगच्छइ । चम्मारो अजिणाए नगरं जाइ । निवस्स मत्थयंमि कमलाणि छज्जन्ति । मत्थयेण वंदामि महावीरं । वणे गए देक्खह । वग्धस्स वा सीहस्स वा सिंगं नस्थि । लोहाओ लोहो वड्ढइ । रागा दोसो जायइ। कोहेण पित्तं कुप्पई।
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