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( २४६
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म.पु० स्ससि (ष्यसि)
स्ससे (यसे) हिसि हिसे
स्सह ) (ष्यथ) स्सथ हित्था । हिह )(ष्यध्वे) .
आत्मनेपद प्र०पु० सं
स्साम्हे म०पु० स्ससे
स्सव्हे तृ०पु० स्सते
स्सन्ते प्राकृत भाषा के भविष्यत्काल के "हिति' वगैरह हकारादि प्रत्यय व्यापक हैं, परन्तु पालिभाषा में ये हकारादि प्रत्यय व्यापक नहीं हैं। शौरसेनी तथा मागधी में भविष्यत्काल के प्रत्यय :एकव०
बहुव० प्र०पु० सं, स्सिमि
स्सिमो, स्सिमु, स्सिम म.पु० स्सिसि, स्सिले
स्सिह, स्सिध, स्सिइत्था तृ०पु० स्सिदि, स्सिदे
स्सिंति, स्सिंते, स्सिइरे ____इन्हीं प्रत्ययों में 'स' के स्थान में 'श' करने से मागधी के प्रत्यय हो जाते हैं।
शौरसेनी रूप :प्र०पु० भणिस्सं, भणिस्सिमि
भणिस्सिमो, भणिस्सिमु,
भणिस्सिम म०पु० भणिस्सिसि, भणिस्सिसे
भणिस्सिह, भणिस्सिध,
भणिस्सिइत्था तृ.पु० भणिस्सिदि, भणिस्सिदे भणिस्सिति, भणिस्सिते,
भणिस्सिइरे
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