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( २५२ ) भण ( भण) धातु ( = कहना, पढ़ना)
भविष्यत्काल में रूप :
एकव०
बहुव० प्र.पु०
भणिस्सामि, भणेस्सामि भणिस्सामो, भणेस्सामो भणिहामि, भणेहामि
भणिस्सामु', भणेस्सामु भणिहिमि, भणेहिमि
भणिस्साम', भणेस्साम भणिस्सं, भणेस्सं
भणिहामो, भणेहामो भणिहाम', भणेहामु भणिहाम', भणेहाम भणिहिमो, भणेहिमो भणिहिमु', भणेहिमु
भणिहिम', भणेहिम इसी प्रकार सब पुरुषों में बहुवचन के भी रूप होंगे। । प्राचीन गुजराती के भणेश, करेश, ( प्रथमपुरुष ) वगैरह रूप इन रूपों के साथ तुलनीय हैं । १. हे० प्रा० व्या० ८।३।१६७ । २. हे० प्रा० व्या० ८।३।१६७ । ३. हे० प्रा० व्या० ८।३।१६६ । ४. हे० प्रा० व्या० ८।३।१६६ । ५. हे० प्रा० व्या० ८।३।१७७ । ६. हे० प्रा० व्या.. ८।३।१५७ । १. बारहवें पाठ में भविष्यत्काल-प्रथमपुरुष के बहुवचन में जो ‘स्सामो',
'हामो' और 'हिमो' तीन प्रत्यय बताए है उनके अतिरिक्त 'स्सामु, स्साम, हामु, हाम , हिमु, हिम' आदि प्रत्यय भी उपलब्ध होते हैं । अतएव उन प्रत्ययों वाले रूप भी ऊपर बता दिये गये हैं।
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