________________
( २८८ ) २. विधि-किसी को प्रेरणा करना । जैसे-वह वस्त्र सीए 'सो वत्थं सिव्वउ'। ३. निमन्त्रण-प्रेरणा करने पर भी प्रवृत्ति न करने वाला-दोष का
प्रत्ययों में जहाँ 'ह' है वहाँ शौरसेनी में 'ध' कर देना चाहिए। जैसे'हसहि'-शौरसेनी हसधि; 'हमह'-शौरसेनी 'हसध' इत्यादि ।
अपभ्रंश भाषा के सब प्रत्यय शौरसेनी के समान हैं परन्तु मध्यम पुरुष के एकवचन में जो प्रत्यय अधिक हैं वे इस प्रकार है :
इ, उ, ए, सु। अपभ्रंश के रूप :एकव०
बहुव० प्र.पु. हरिसमु, हरिसामु, हरिसेमु हरिसमो, हरिसामो, हरिसेमो म.पु. हरिससु, हरिसेसु
हरिसह, हरिसहे हरिसिज्जसु, हरिसेज्जसु हरिसध, हरिसधे हरिसिज्जहि, हरिसेज्जेहि हरिसाहि, हरिसहि हरिसिज्जे, हरिसेज्जे
हरिस, हरिसि, हरिसु, हरिसे तृपु० हरिसदु, हरिसदे, हरिसउ, हरिसंतु, हरिसेंतु, हरिसिंतु
हरिसेउ प्राकृत के हरिसिज्जसु, हरिसिज्जहि, हरिसिज्जे प्रयोगों का मागधी रूप बनाने पर 'हरिस्' का 'हलिश्' हो जाएगा तथा इज्जसु, इज्जहि, इज्जे प्रत्यय का इय्यशु, इय्यधि, इय्ये-ऐसा परिवर्तन हो जाएगा ( देखिए पृ० ३४ तथा पृ० ६६ नि० ५ ) । प्राकृत रूपों में मागधी भाषा के नियमानुसार परिवर्तन करके सब रूप बना लें।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org