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( २८७ )
इच्छा - सूचन, विधि, निमन्त्रण, आमन्त्रण, अधीष्ट, संप्रश्न, प्रार्थना, प्रैष, अनुज्ञा, अवसर और अधीष्टि-इन अर्थों को सूचित करने के लिए विध्यर्थक और आज्ञार्थक प्रत्ययों का प्रयोग होता है । ये प्रयोग निम्नोक्त प्रकार से हैं
१. इच्छा सूचन — मैं चाहता हूँ वह भोजन करें
'इच्छामि स भुञ्जउ '
'भू' धातु के रूप
प्र०पु०
भवामि
म०पु० भव, भवाहि
तृ०पु० भवतु
'भू' धातु के रूप :
प्र०पु० भवे
म०पु० भवस्सु तृ०पु० भवतं
परस्मैपद
आत्मनेपद
'अस्' धातु के रूप :
प्र०पु० अस्मि, अम्हि म०पु० आहि
तृ०पु० अत्थु
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भवाम
भवथ
भवंतु
-:
भवामसे
भवहो
भवंतं
अस्म, अम्ह
संतु
- देखिए पा० प्र० पृ० १६१, १६२ ।
शौरसेनी प्रत्यय की विशेषता
'तु' के स्थान में 'दु' का प्रयोग होता है । जैसे:-- जीव + दु = जीवदु; मर + दु = मरदु । अन्य सब प्रत्यय प्राकृत के समान हैं । परन्तु प्राकृत
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