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भागीदार हो ऐसी प्रेरणा-निमन्त्रण होता है। जैसे-दो बार सन्ध्या करो “दुवेलं संझं कुणउ"।
४. आमन्त्रण-प्रेरणा करने पर भी प्रवृत्ति करना या न करना उसकी इच्छा पर निर्भर रहे ऐसी प्रेरणा। यहां बैठो "एत्थ उवविसउ"।
५. अधीष्ट-मादर प्रेरणा-व्रत का पालन करो "वयं पालउ" ।
६. संप्रश्न-एक प्रकार की धारणा । जैसे-क्या मैं व्याकरण पढूँ अथवा आगम "किं अहं वागरणं पढामु उअ आगमं पढामु"।
७. प्रार्थना-याचना, प्रार्थना-मेरो प्रार्थना है मैं आगम पर्दू "पत्थणा मम आगमं पढामु" ।
८. प्रैष-तिरस्कारपूर्वक प्रेरणा-घड़ा बनाओ "घडं कुणउ"।
९. अनुज्ञा-नियुक्त करना-तुम को नियुक्त किया है, घड़ा बनाओ "भवं हि अणुन्नाओ घडं कुणउ"।
१०. अवसर-समय-तुम्हारे काम का समय हो गया है इसलिए घड़ा बनाओ "भवओ अवसरो घडं कुणउ" ।
११. अधीष्टि-सम्मानपूर्वक प्रेरणा-तुम पण्डित हो, व्रत की रक्षा करो "भवं पण्डिओ वयं रक्खउ"।
धातुएँ वज्ज ( वर्ज )= वर्जना, त्याग देना, निरोध करना । छिंद ( छिन्द् ) = छेदना, छिन्न करना, अलग करना । लभ ( लभ् ) = पाना, प्राप्त करना । गवेस् ( गवेषु ) = गवेषणा करना, शोधना, खोज करना । वि + किर , वि + इर ( वि + किर ) = बिखेरना, फैलाना, छिटना। वि + प + जह ( वि + प्र + जहा ) = त्याग करना, दूर करना । कुव्व् ( कुरु ) = करना, बनाना। पसस् , पास् ( दृश्-पश्य )= देखना।
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