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( २७१ )
अव + सीअ ( अव + सोद ) = अवसाद पाना, खेद पाना । लिप्प् ( लिप्य ) = लेप करना ।
सं + जम् ( सं + यम ) = संयम करना |
पडि + कूल ( प्रति + कूल ) प्रतिकूल, विपरीत होना ।
सर् ( स्मर् ) = स्मरण करना ।
प + मुच्च ( प्र + मुच्य ) = प्रमुक्त होना, बिलकुल छूट जाना । सेव् ( सेव् ) = सेवन करना ।
विज्ज् ( विज्ज् ) = विद्यमान रहना, उपस्थित होना । हिंस् (हिंस् ) = हिंसा करना, जीव मारना | उव + इ ( उप + इ ) = पास जाना, प्राप्त करना ।
वाक्य ( हिन्दी )
पण्डितजन हर्षित नहीं होंगे और कोप भी नहीं करेंगे । हम दोनों आचार्य से इस प्रकार बारम्बार कहेंगे । यह विद्यार्थी बड़ाई नहीं करेगा अपितु संयम रखेगा । मैं यह सत्य कह दूँगा ।
गाड़ीवान बैलों को सम्भालेगा और गाड़ी में जोतेगा । तपस्वी योगो व्याधियों से नहीं डरेगा |
गार्ग्य मुनि गणधर बनेगा ।
वन का सिंह जंगली हाथी के मस्तक को छेदेगा ।
आचार्य पुर्ण और तुच्छ दोनों को धर्म कहेगा ।
'सभी को जीवन प्रिय है' ऐसा कौन अनुभव नहीं करेगा ?
दुष्ट शिष्य नहीं पढ़ेंगे अपितु निरंतर अपनी बड़ाई करेंगे और कूदेंगे ।
वाक्य ( प्राकृत )
समणे महावीरे जहा पुण्णस्स कत्थिहिइ तहा तुच्छस्स कत्थिहिए । धम्मं वेच्छं ।
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