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जा सकती है । 'इन्' प्रत्ययान्त शब्दों के सभी रूप लगभग इकारान्त शब्द की भाँति होते हैं ।
इकारान्त-उकारान्त नपुंसकलिङ्ग
इकारान्त-उकारान्त नपुंसकलिङ्ग अंग के तृतीया से सप्तमी पर्यन्त सभी रूप, इकारान्त - उकारान्त पुंलिङ्ग रूपसाधना की भाँति हैं और प्रथमा, द्वितीया तथा सम्बोधन की रूपसाधना अकारान्त नपुंसकलिङ्ग की भांति है । यथा :
वारि ( वारि
= जल )
प्र०-द्वि० वारि + म् = वारि ( वारि) वारि + णि = वारीणि
वारि + इं = वारीइं वार + इँ = वारीइँ
सं०
वारि ! ( वारि ! )
""
(सूत्रों के लिये देखिये पाठ सातवाँ का प्रारम्भ )
महु ( मधु =
प्र० - द्वि० महु + म् = महुं ( मधु )
सं०
शहद )
-
महु + णि महूणि महु + ई = महूई महु + ई = महूइँ
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महु ! ( मधु ! )
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( सूत्रों के लिए देखिए पाठ सातवाँ का प्रारम्भ ) चतुर्थी के एकवचन में 'वारिणे', 'वारिस्स'; 'महुणे', 'महुस्स' रूप समझना चाहिए । लेकिन 'वारये', 'महवे' नहीं ।
"1
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( मधूनि )
वारीणि
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इकारान्त और उकारान्त शब्द (पु ंल्लिङ्ग)
मुणि ( मुनि ) = मुनि - मनन करने वाला, मौन धारण करनेवाला
सन्त ।
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