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( २१५ ) हम, तुम और वे सभी संसार के पाश को काटते हैं। श्रमण जल से वस्त्र शुद्ध करते हैं-धोते हैं । कुशल पुरुष निर्दोष वचन को उत्तम कहते हैं । तपों में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ है। क्षत्रियों का लक्षण धैर्य और वीर्य है। जितेन्द्रिय पुरुष बुद्ध और महावीर की सेवा करते हैं । सभी प्राणी लोभ से पाप के मार्ग पर चलते हैं। धीर क्षत्रिय मनुष्य का कुशल-क्षेम चाहते हैं। तुम धैर्य से लोभ को जीतते हो। वृक्ष बढ़ते और कुम्हलाते हैं इसलिए उनमें जोव है। आचार्य जागते हैं और ध्यान करते हैं। ब्राह्मण और श्रमण शास्त्रों से लड़ते हैं ।
चैत्य में महावीर और बुद्ध की चरण-पादुकाएँ हैं। तप से वृद्धि पाये हुए वर्धमान मनुष्यों के कल्याणार्थ संन्यास लेते हैं। दाँत से लोहे को चबाते हो। उसके आँगन में सूर्य का तेज दीप्त होता है । वह तुम को बार-बार याद करता है। हम महल के ऊपर हैं। हम में वह एक जितेन्द्रिय पण्डित है। तुम इसको बारम्बार वंदना करते हो। वे, तुम और हम दूध पीते हैं । पापी ब्राह्मण सब से हलका है। संसार में कोई किसी का नहीं। तुम अन्तर को जानते हो इसलिए प्रमाद नहीं करते । मेरा भाई शीत से काँपता है । यह ब्राह्मण इन लोगों को शाप देता है ।
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