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( २१६ ) यह समुद्र क्षुब्ध होता है। . वह और मैं लकड़ियां छीलता हूँ। अधिकतर लोग निरर्थक कोप करते हैं । तुम उसको, मुझको और इसको जीतते हो। सच्चे ब्राह्मण के बिना दूसरा कौन उत्तम है ? जन्म से कोई ब्राह्मण नहीं बन सकता । संसार में सभी सभी के शरणरूप हैं। संसार में सर्वत्र त्रस और स्थावर जीव हैं। श्रमण पापमय कर्मों का त्याग करता है। श्रमणों में वर्धमान श्रेष्ठ है। दानों में अभयदान श्रेष्ठ है । पाँव से अग्नि को कुचलते हो। नखों से तुम पर्वत को खोदते हो । पुष्पों में अरविन्द श्रेष्ठ है। थोड़ा असत्य भी महाभयंकर है। मजदूर चाँदी के लिए पर्वत को खोदते हैं । पिता की गोद में पुत्र लोटता है।
वाक्य (प्राकृत ) एगो हं नत्थि मे को वि नाहमन्नस्स कस्स वि धीरो वा पण्डितो महत्तमपि नो पमायए । इमे तसा पाणा, इमे थावरा पाणा न हंतव्वा इति सव्वे आयरिया भासंति । अणेगचित्ते खलु अयं पुरिसे विविहेहि दुखेहिं जूरइ ।। तओ से एगया पासेहिं दिव्वइ । कोहेण, मोहेण, लोहेण वा चित्तं खुब्भइ तत्तो अलं तव एएहि ।
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