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( १९१ ) राजा के भण्डार में चांदी है। पण्डित पुरुष मोक्ष चाहते हैं। तृष्णा से कलह होता है और कलह से द्वेष होता है ।
संयमी श्रमण न तो सुखों से हर्षित होता है और न दुःखों से घबराता ही है।
नट गीत गाते हैं और नाचते हैं। सिंह और बाघ तालाब का पानी पीते हैं। बाघ और सिंह पिंजरे में दौड़ते हैं। बैल के कन्धे पर जुआ शोभा पाता है । पण्डित शील को ढूँढ़ते हैं, लेकिन गोत्र नहीं पूछते । शील का मार्ग दुर्लभ ( कठिन ) है। बालक उपाध्याय से पढ़ता हैं। वीर पुरुष दुःख से शोक नहीं करते।
प्रयोग (प्राकृत में) घाणं गन्धस्स गहणं वयंति । लोहा मोहो जायइ। दुक्खेसुंतो वेया वि न रक्खंति । सोत्तं सदस्स गणं वयंति । दुक्खेहितो बीहंति पंडिता। कायं फासस्स गहणं वयंति । सुक्खेसु मित्तं सुमिरति। समणे महावीरे जयति । मूढो पुणो पुणो बज्झं देक्खइ । पण्डिता खीरं पिबित्था। मूढा कामेसु मुझंति ।
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