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( १९८ ) णं
णाणि, णाई, णाई . ,, (,) शेष रूप पुंल्लिग 'तत्' शब्द के समान बनते हैं ।
क (किम्, पुंलिङ्ग) को (कः )
के ( के) कं ( कम् )
के, का ( कान् ) केण, केणं, किणा, किण्णा केहि, केहिं, केहि, (केन )
(कै.) कस्स, कास (कस्मै, कस्य) कास, केसि, ( केभ्यः, के ) कम्हा ( कस्मात् ) काओ, काउ किणो, कीस
काहि, केहि काओ, काउ
काहिंतो, केहितो
कासुंतो, केसुंतो चतुर्थी विभक्ति के समान होते हैं । कसि, कस्सि, कहि केसु, केसुं ( केषु) कम्मि ( कस्मिन् ) कत्थ ( कुत्र) 'काहे, काला, कइआ* (कदा)
क (नपुंसकलिङ्ग) प्र-द्वि० किं ( किम् ) काणि, काई, काइँ ( कानि) ('क' के पालिरूप भी इन रूपों के समान हैं, दे० पा०प्र० पृ०१४६)
सर्वनाम शब्द अण्ण, अन्न( अन्य ) = अन्य, दूसरा । १. ये तीनों रूप 'तब' अर्थ में ही प्रयुक्त होते है । * हे० प्रा०व्या० ८।३।६५ ।
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