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( १५० ) स्वरान्त धातुएँ :दा (दा)-देना।
ठा (स्था)-स्थिर रहना, ठहरना । वा (वा)-बोना, वपन करना, झा (ध्या)-ध्याना, ध्यान करना।
उगाना। हा (हा)-छोड़ना, त्यागना । पा (पा)-पीना।
बू (ब्रू)-बोलना। गा (गा)-गाना। हो (भू) होना। जा (जा)-जाना। धा (धाव)-दौड़ना। णे
(नी)-ले जाना, पहुँचाना। खा (खाद्)-खाना, भोजन करना।
अकारान्त धातुओं को छोड़कर शेष सभी स्वरान्त धातुओं के अन्त में पुरुषबोधक प्रत्यय लगाने से पहले विकरण 'अ' विकल्प से होता है (हे० प्रा० व्या० ८।४।२४० )। हो+इ=होइ।
हो + अ +इ=होअइ। खा+इ= खाइ।
खा+अ+इ= खाअइ। धा+ इ = धाइ।
धा+अ+ इ = धाअइ । ( अकारान्त धातुओं के अन्त में 'अकार' विद्यमान है। इसलिए उनके बाद विकरण 'अ' दुबारा लगाने की आवश्यकता नहीं है।) अकारान्त धातुएँ :चिइच्छ (चिकित्स)-चिकित्सा करना, शंका करना, अथवा उपाय
करना, उपचार करना । जुउच्छ (जुगुप्स)-घृणा करना अथवा दया करना । अमराय (अमराय)-देव की भाँति रहना । चिइच्छइ । जुउच्छइ । अमरायइ ।
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