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( १६५ ) परि (परि)-चारों तरफ परि + बुडो= परिवुडो-परिवृत,
चारों ओर से घिरा हुआ। पलि , , पलि + घो = पलिघोपरिघ,घन । अपि (अपि)-भी, उल्टा अवि + हेइ = अविहेइ = ढाँकता है ।
अपि + हेइ = अपिहेइ = ,, पि+हेइ = पिहेइ = , . को + वि = कोवि = कोइ भो। को+ इ = कोइ = , किम् + अवि=किमवि = कुछ भी।
जं+पि = जंपि= जो भी। उ (उप)-पास उव + गच्छइ = पास जाता है ।
ऊ + ज्झायो= ऊज्झायो = उपाध्याय । उव , ,
ओ+ ज्झायो-ओज्झायो ,,
उव + ज्झायो = उवज्झायो = ,, आ-मर्यादा, उल्टा, आ+ वसइ = आवसइ अमुक
मर्यादा में रहता है।
आ + गच्छइ = आता है। उपसर्गों के अर्थ निश्चित नहीं होते। इसीलिए कोइ उपसर्ग धातु के मूल अर्थ से विपरीत अर्थ बताता है, कोई मूल अर्थ को बताता है, कोई
ओ "
"
१. इन सब संस्कृत उपसर्गों में शौरसेनी, मागधी, तथा पैशाची भाषा के
अनुसार परिवर्तन कर लेना चाहिये, जैसे-अति, शौ० अदि । परि, मा० पलि । अभि, पै० अभि। .
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