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शब्द ( नपुंसकलिंग) नयण ( नयन) = नयन, नेत्र, आँख । मत्थय ( मस्तक)= मस्तक, सिर ।
मण-तृतीया एकवचन मणसा ।
पंचमी ,, मणसो। च०० , मणसो ।
सप्तमी , मणसि । पालि में भी 'मन' शब्द के मनसा, मनसो, मनसि रूप होते हैं ।
कर्मन्-कम्मतृ० ए०-कम्मणा, कम्मुणा। च० ष० ए०-कम्मणो, कम्मुणो। पं० ए०-कम्मुणा, कम्मुणो।
स० ए०-कम्मणि । इसी तरह पालि में भी कम्मना, कम्मुना, कम्मुनो, कम्मनि रूप होते हैं। शिरस्-सिर का तृ० ए० में सिरसा रूप भी होता है । ये सब रूप आर्षप्राकृत में प्रचलित हैं । संस्कृत के रूपों में परिवर्तन करने से इन रूपों की सिद्धि करनी सरल है ( हे० प्रा० व्या० शेषं संस्कृतवत् ८।४।४४८)। पालि की विशेष विशेषता के लिए-दे० पा० प्र० पृ० १३५ नं० ६१-६२। अपभ्रंश रूपों की विशेषताकमलं
कमलाइ, कमलई।
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