________________
निर् (निर् ) - निरन्तर,
नि
सतत,
रहित
नी
बु ( दुर) — दुष्टता
26g
अभि
अहि
""
,,
( अभि ) - सामने
Jain Education International
"
( १६३ )
31
वि - विशेष, नहीं, विपरीत
निर् + इक्खइ = निरिक्खइ = निरीक्षण करता है, देखता है । नि + ज्झरइ = निज्झरइ झरता है । नि + सरइ = नीसरइ = निकलता है । निर् + अंतरं= निरंतरं = निरंतर | निर् + धनः = निद्धणो = निर्धन, गरीब ।
दु + गच्छइ = दुग्ग्गच्छ इ = दुर्गति में जाता है ।
दो + गच्चं = दोगच्चं = दौर्गत्य, दुर्गति ।
दू + हवो = दूहवो = भाग्यहीन, बदनसीब |
अभि + भासइ = अभिभासइ = सामने जाता है ।
अहि + मुहं = अहिमुहं अभिमुख, सामने ।
वि + जाणइ = विजाणइ = विशेष जानता है ( करता है ) | वि + जुंजइ = विजुंजइ : वियुक्त होता है ( करता है ) । अलग होता है ।
वि + कुव्वइ = विकृत करता है ।
१. 'दू' और 'सू' का उपयोग केवल 'हव' (भग) शब्द के पूर्व ही
होता है । देखिए, पू० २३ नियम ५ ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org