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( १६६ ) वीर + म् = वीरं (वीर) वीर + आ = बीरा (वीरान्),
वीर + ए-वीरे
संस्कृत भाषा में 'स्मात्' 'स्मिन्' प्रत्यय मात्र सर्वादि शब्द में ही लगते हैं । प्राकृत भाषा में ये प्रत्यय व्यापक हैं इसी हेतु बुद्धस्मा, वीरंसि जैसे रूप प्राकृत भाषा में प्रचलित हैं ।
शौरसेनी, मागधी, पैशाची भाषा के रूप भी 'वीर' के रूप जैसे ही बनेंगे, विशेषता इस प्रकार है :
पंचमो एकवचन-शौरसेनी-वीरादो, वीरादु । मागधो रूप
प्रथमा एकवचन-'वीले' (मागधी भाषा में पुंलिंग में प्रथमा के एकवचन में 'वीले' ऐसा एकारान्त रूप होता है, 'वीलो' ऐसा ओकारान्त रूप नहीं होता)।
पंचमी एकवचन-वीलादो, वीलादु ।
षष्ठी , वीलाह, वोलश्श । षष्ठी बहुवचन-वीलाहं, वोलाणं (हे० प्रा०व्या० ८।४।२६६,३००)। पैशाची रूपपंचमी एकवचन-वीरातो, वोरातु । अपभ्रंश रूपों में विशेष भिन्नता है :एकवचन
बहुवचन वीरु, वीरो, वीर, वीरा। वीर, वीरा। वीरु, वीर, वीरा।
वीर, वीरा। वीरें, वीरेण, वीरेणं
वोरेहिं, वीराहिं,
वीरहि। च० वीरस्सु, वीरासु, वीरसु,वीराहो, वीराहं, वीरह, वीर, २. हे० प्रा० व्या० ८।३॥५॥ ३. हे० प्रा० व्या० ८।३।१४ ।
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