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२. पालि के शौरसेनी के मागधी के अपभ्रंश के संस्कृत के
प्रत्यय- प्रत्यय- प्रत्यय- प्रत्यय- प्रत्यय१. मि, ए मि, ए मि, ए, उं, मि मि, ए २.सि,
से सि , से शि, शे हि, सि, से सि, से ... ३. ति, ते दि, दे दि, दे दि, दे, इ, ए ति, ते ३. प्रथमपुरुष के एकवचन के इस 'ए' प्रत्यय का प्रयोग विरल होता
है-प्राचीन प्राकृत में-आर्ष प्राकृत में-प्रायः होता है
वन्दे उसभं अजिअं "चतुर्विंशतिस्तव-लोगस्स" सूत्र द्वितीय गाथा । ४. संस्कृत के समान पालि भाषा में धातुओं का गणभेद है तथा आत्मने
पद और परस्मैपद के प्रत्यय भी जुदा-जुदा है (देखो पा० प्र० पृ० १७१ आख्यातकल्प) परन्तु प्राकृतभाषा में वैसा गणभेद नहीं है तथा आत्मनेपद के और परस्मैपद के प्रत्यय भी जुदे-जुदे नहीं हैं परन्तु इन्हीं प्रत्ययों के अन्तर्गत दोनों पदों के प्रत्यय बता दिए हैं। जब शौरसेनी, मागधी, पैशाची, अपभ्रंश में इन प्रत्ययों का उपयोग करना हो तब उस उस भाषा के अक्षरपरिवर्तन के नियम लगाकर करना चाहिए, शौरसेनी वगैरह भाषा के प्रत्यय दूसरे टिप्पण में बता दिए हैं, पैशाचो के प्रत्यय प्राकृत के समान हैं अतः नहीं बताए हैं। शौरसेनी रूप प्राकृत के समान हैं परन्तु तृतीयपुरुष में 'हसदि, हसदे' दो रूप होते हैं। मागधी रूप शौरसेनी के समान हैं परन्तु 'हस्' के स्थान में
'हश्' होगा। पैशाची रूप प्राकृत के समान हैं । अपभ्रंश रूप- १. हसउं, हसमि ।
२. हसहि, हससि, हससे । ३. हसदि, हसदे, हसइ, हसए ।
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