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ही उसे संस्कृत नाम रख दिया, महर्षि पाणिनि तथा महर्षि भाष्यकार पतंजलि ने तो भाषा का नाम 'संस्कृत' कहा ही नहीं परन्तु केवल भाष्यकार ने ही लौकिक शब्दों के अनुशासन की बात कही है उससे मालूम होता है कि भाष्यकार को भाषा का नाम 'लौकिक' अभिप्रेत था, न कि संस्कृत ।
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इसके अतिरिक्त अमरकोश, वैजयन्तीकोश; मंखकोश, धनंजयकोश इत्यादि कोशकारों ने भी अपने-अपने कोशों में भी 'संस्कृत शब्दों का कोश करते हैं' ऐसा कहीं भी नहीं दरसाया है । अमरकोश में कहा है कि 'संस्कृत' शब्द के दो अर्थ हैं - १. कृत्रिम, २. लक्षणोपेत - शास्त्र के अनुशासनसहित अर्थात् शास्त्र द्वारा व्यवस्थित : " संस्कृतम् । कृत्रिमे लक्षणोपेते” कां० ३, नानार्थवर्ग इलो० १२५४ अभिधान संग्रह-निर्णयसागर, सन् १८८९ का संस्करण |
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