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रखना
( १४० ) वरिस् ( वर्ष ) बरसना, बरसात, गरिह, (गर्ह, ) गर्हणा करना, होना
निंदा करना करिस् ( कर्ष ) काढ़ना, खोंचना जेम् ( जेम् ) जीमना, भोजन करना मरिस् ( मर्ष ) सहन करना, क्षमा देक्ख (दृश्) देखना, जोहना, आंखों
से देखना घरिस् ( घर्ष ) घिसना
पुच्छ् ( पृच्छ् ) पूछना, प्रश्न करना तुरिय् (तूर्य ) त्वरा करना, उता- पूर (पूर ) पूरा करना, भरना वला करना, जलदी करना
' कर् ( कर् ) करना, बनाना अरिह, ( अर्ह ) पूजना, अर्घना पुरिय ( पूर्य ) पूरना, पूर्ण करना,
वंद । ( वन्द ) वंदन करना, भरना वन्द्)
नमस्कार करना मरिस् (मर्श ) विचारना, विचार- पत् ।
पत् । (पत् ) पड़ना, गिरना। विमर्श करना पड्।
५. हे० प्रा० व्या० ८।३.१४५ । जब धातु के अन्त में 'अ' हो तब ही
से, ते और ए प्रत्यय लगते हैं, 'अ' न हो तो ये प्रत्यय नहीं लगतेठा धातु से ठासे, ठाते, ठाए रूप नहीं होंगे परन्तु ठासि,
ठाति और ठाइ रूप ही बनेंगे। ६. देखिए पृ० ८६ आगम । ७. ( ) इस निशान में दिये हुए सब शब्द (धातु वा संज्ञा शब्द) संस्कृत
भाषा के हैं और मात्र तुलना के लिए बताए हैं। बताए हुए धातु वा संज्ञा शब्द का शौरसेनी, मागधी,पैशाची में प्रयोग करना हो तब उन धातुओं में व संज्ञा शब्दों में उस उस भाषा के अक्षरपरिवर्तन का नियम लगाना जरूरी है।
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