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( ४४ ) भ्रंश भाषा में भी लागू होते हैं । जैसे:-१४ वाँ नियम शौरसेनी, पैशाची, चूलिका-पैशाची और अपभ्रंश में भी लागू होता है।)
शब्द के बीच में स्थित असंयुक्त व्यञ्जन के विशेष परिवर्तन।
'क' का परिवर्तन क' को ख' कर्पर-खप्पर । कील-खील । कीलक-खील
कुब्ज-खुज्ज (खुज्ज-कुबडा)। 'क' को 'ग' अमुक-अमुग । असुक-असुग। आकर्ष-श्रागरिस ।
श्राकार-श्रागार । उपासक-उवासग। एक-एग। एकत्व-एगत्त । कन्दुक-गेन्दुश। सं० गेन्दुक । तीर्थकर-तित्थगर । दुक्ल-दुगुल्ल । मदकल-मयगल ।
मरकत-मरगय । श्रावक-सावग । लोक-लोग। 'क' को 'च' किरात-चिला ( चिलाश्र याने भील )। 'क' को 'भ' शीकर-सीभर, सीबर। .
को 'म' चन्द्रिका-चन्दिमा। सं० चन्द्रिमा । 'क' को 'व' प्रकोष्ठ-पवह, पउह। 'क' को 'ह' चिकुर-चिहुर । सं० चिहुर । निकष-निहस ।
स्फटिक--फलिह । शीकर-सीहर, सीअर । (पालि भाषा में 'क' को 'ख' तथा 'ग' होता है । देखिए-पा० प्र० पृ०५५, कख तथा क-ग)
*जहाँ परिवर्तन का विशेष नियम लागू होता है वहाँ परिवर्तन का सामान्य नियम नहीं लगता ऐसी बात नहीं है। जैसे :-तीर्थकरतित्थयर । लोक-लोभ श्रादि । देखिए-पृ० ३३, सामान्य नियम १. (ख ) तथा पृ० ३७, ३ । १. हे० प्रा० व्या० ८।१।१८१, १८२, १८३, १८४, १८५, १८६ ।
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