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( ६१ )
ज्ञानीय- जाणिज
ज्ञापना -जावणा
ज्ञेय - जेय श्रभिज्ञ-हिज,
अल्पज्ञ - श्रप्पज्ज
श्रात्मज्ञ - श्रपज
इङ्गितज्ञ - इंगिश्रज
श्राज्ञा-अजा
दैवज्ञ - देवज
दैवज्ञ - दइवज
प्रज्ञा-पजा
मनोज्ञ-मणोज
संज्ञा -संजा
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संप्रज्ञ - संपज्ज
सर्वज्ञ
- सव्वज
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दइव ।
पण्णा ।
मणो ।
मरणा, संगा ।
संपण |
सव्वरा ।
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( पालि भाषा में भी 'ज्ञ' को 'ज' होता है । देखिए - पा० प्र० पृ० २४ - टिप्पण प्रज्ञान - पजान )
'द्र' के 'र' का लोप
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वाणिज ।
गावणा ।
णेय ।
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हिरणु ।
अपणु ।
अपणु । इंगिry |
श्राणा ।
hary |
चन्द्र - चंद, चन्द्र | रुद्र- रुद्द, रुद्र ।
समुद्र - समुद्द, समुद्र । भद्र-भद्द, भद्र ।
द्रव-दव, द्रव । द्रह - दह, द्रह । द्रुम - दुम, द्रुम ।
अपभ्रंश भाषा में संयुक्त अक्षर में परवर्ती 'र' का लोप विकल्प से होता है । प्रिय-पिउ श्रथवा प्रिउ । प्राकृत भाषा में पिय ।
अः को
२
शब्द के अंत में श्राये हुए 'श्रः' का 'श्री' होता है। जैसे :१. हे० प्रा० व्या० ८|४| ३६८ २. हे० प्रा० व्या० ८|१|३७ ।
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