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सन्धि
सन्धि अर्थात् परस्पर मिल जाना, एक दूसरे में मिल जाना अथवा एक दूसरे में छिप जाना ।
प्रथम पद के अन्तिम स्वर और पिछले पद के पूर्व स्वर के मिल जाने पर जो परिवर्तन होता है उसे स्वर-सन्धि कहते हैं ।
पद के अन्दर के व्यञ्जन का अपने पीछे आनेवाले व्यञ्जन के कारण जो परिवर्तन होता है उसे व्यञ्जन सन्धि कहते हैं । जैसे:
कंठ-कण्ठ | चंद-चन्द । कंकण - कङ्कण | संख - सङ्घ । गंगा-गङ्गा आदि ।
अर्धमागधी में संस्कृत की भाँति पृथक्-पृथक् व्यञ्जनों की सन्धि नहीं होती ।
१.
एक पद में सन्धि नहीं होती है' :
प्राकृत भाषा के अनेकानेक शब्द स्वरबहुल होते हैं ऐसे पदों में सन्धि करने से अर्थभ्रम होता है अतः इस भाषा में एक पद में सन्धि नहीं होती है । जैसे:——
नई (नदी), पइ (पति), कइ (कवि), गअ ( गज), गउआ (गो-गाय), काअ (काक), लोअ (लोक), रुइ (रुचि), रइ ( रति) आदि ।
अपवादः – कुछ शब्दों में एक पद में भी स्वरसन्धि हो जाती है ।
जैसे:
१. हे० प्रा० व्या ८।१।४
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