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दीर्घ को हस्व :
यमुनातट - जंउणयड, जंउणायड नदीस्रोतस् - नइसोत्त, नईसोत्त गौरीगृह —— गोरिहर, गोरीहर
वधूमुख - बहुमुह, वहूमुह
संस्कृत भाषा में भी समास में ह्रस्व का दीर्घ और दीर्घ का हस्व
होने का विधान पाणिनिकाल से पाया जाता है
का दीर्घ
:
( 180 )
अष्टकपालम् —अष्टाकपालम् ।
अष्टगवम् - अष्टागवम् । अष्टपदः -- अष्टापदः, इत्यादि ।
दीर्घ का ह्रस्व :
दर्शनीया + भार्याः
अता + थ्यम् -- अतथ्यम् ।
पचन्ती + तरा - पचन्तितरा ।
नर्तकी + रूपा नर्तकिरूपा ।
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दर्शनीयभार्यः ।
स्त्री + तरा — स्त्रितरा, इत्यादि ।
दीर्घका हव - देखिए - काशिका ६।३।३४, ६।३।३, ६।३।४४, ६।३।४५॥ ह्रस्व का दीर्घ - देखिए - काशिका ६।३।११५ से ६।३।१३२, ६।३।४६।
इसके अतिरिक्त इस समास के और भी बहुत से प्रयोग पण्डितों की भाषा में उपलब्ध होते हैं परन्तु उन सबका यहाँ कोई उपयोग नहीं होने से नहीं दिये गये हैं । इस प्रकार समासों के विषय में उपयोगिता की दृष्टि से आवश्यकतानुसार स्पष्टता हो जाती है ।
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