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( ११२ ) प्रकार प्राकृत भाषा में 'शेते' के स्थान में 'सए' तथा 'ईष्टे' के स्थान में 'ईसे' अथवा -ईसए' प्रयोग होते हैं।
देखिये, वैदिकप्रक्रिया सू० ७।१।१। तथा ऋग्वेद पृ० ४६८ महाराष्ट्र संशोधन मण्डल। ४. वर्तमानकाल, भूतकाल वगैरह कालों की वेदों में तथा
प्राकृत भाषा में कोई नियमिता नहीं है अर्थात् वैदिक क्रियापद में वर्तमान के स्थान में परोक्ष भी होता हैम्रियते के स्थान में ममार-देखिये, वै० प्र० ३।४।६ ।
इसी प्रकार प्राकृत भाषा में परोक्ष के स्थान में वर्तमान का प्रयोग भी होता है-प० प्रेक्षांचक्रे के स्थान में व० पेच्छइ । प० आबभाषे के स्थान में व० आभासइ तथा व० शृणोति के स्थान में भू० सोहीअ--देखिये, हे० व्या० ८।४।४४७। काल के व्यत्यय की तरह वैदिक नामों के रूपों में तथा प्राकृत भाषा के नामों के रूपों में विभक्तियों का भी व्यत्यय होता रहता है। वेदों में और प्राकृत में चतुर्थी विभक्ति के स्थान में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग विहित है। -देखिये वै० प्र० सू० २।३।६२ तथा हैम० प्रा० व्या० ८।३।१३१ ।
वेदों में तृतीया विभक्ति के स्थान में षष्टी विभक्ति का प्रयोग होता है -वै० प्र० २।३।६३ तथा है० प्रा० व्या० ८।३।१३४ । १३५, १३६, १३७ तथा कच्चायण पालिव्याकरण कारककप्प
कां ६, सू० २०, ३६, ३७, ३८, ३६, ४०, ४१, ४२। । ६. सब प्रकार के विधानों में पैदिक व्याकरण में बहुलम् का
व्यवहार होता है। इसी प्रकार प्राकृत भाषा के व्याकरण में सर्वत्र बहुलम् का व्यवहार होता है। देखिये-बहुलं छन्दसि २।४।३९ तथा ७३ ।
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